Monday, February 21, 2011

प्यार करना बुरा नहीं है लेकिन उसको किसी दिन महीने और साल में बाँध कर रखना मुझे नहीं लगता की अच्छी बात है, क्योंकि प्यार तो किसी भी समय, काल और वातावरण में वैसा ही रहता है, उसमे समय और महीने के हिसाब से कोई कमी या अधिकता नहीं आती, अगर कोई इसे महीने या काल के अंदर बाँध कर रखता है तो उस ब्यक्ति का अपना विवेक है, जहा तक प्यार या आपसी रिश्तो में विश्वास की बात है तो आधुनिक बनने की होड़ में हम रिश्तो की अहमियत को खोते जा रहे हैं,ये रिश्ते सिर्फ प्रेमी या प्रेमिका तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि आपसी पारिवारिक रिश्तों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है,प्यार और धोखा... ये बात केवल पुरुष बर्ग में ही देखने को नहीं मिल रही है बल्कि महिला या लडकियों में भी देखने को मिल रही है, आधुनिकतावादी और पाश्चात्य सोच की बोझ में दबी आज की युवा पीढ़ी जिस तरह के आधे अधूरेपन में जी रही है उसका मिशाल सामने है, रोज किसी प्रेमी द्वारा आत्महत्या की खबर मिलती है तो किसी प्रेमिका की, आधुनिकतावादी और पाश्चात्य रहन सहन वेश भूषा की तो आज की पीढ़ी नक़ल कर रही है लेकिन वैचारिक रूप से हम उतने ही पिछड़े हुए हैं, उनके आधुनिक विचारो को हम कॉपी नहीं कर पा रहे हैं, जहाँ तक किसी प्रेमी या प्रेमिका द्वारा फ्लर्ट करने की बात है तो ये ब्यक्तित्व का ओछापन है और कुछ नहीं, जो की भारतीय समाज की युवा पीढ़ी के दिलो दिमाग में रच बस गया है, और शायद यही कारण है की समाज में ब्यक्ति के मूल्यों का ह्रास हुआ है, चाहे वे हमारे सामाजिक, पारिवारिक,आर्थिक या राजनीतिक मूल्य ही क्यों ना हो.................