Friday, April 29, 2011

नौकरशाही और भ्रष्टाचार..........

समूचे देश में भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाकर स्वर्गलोक की वैतरणी पार करने वालों की फ़ेहरिस्त दिन प्रति दिन लम्बी होती जा रही है। प्रशासन की पारदशर््िाता और नियम कायदों से कामकाज का ढोल पीटने वाली सरकारों के ऐन नाक के नीचे नौकरशाहों के सरकारी बंगलों से करोडों के नोट मिलना साफ बताता है कि किस तरह आम जनता की गाढी कमाई से नये दौर के धनकुबेर पैदा हो रहे है। एक तरफ देश के हुक्मरान आम जनता से भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ नौकरशाह उन्हीं हुक्मरानों की हमजोली बन कर सरकारी खजाने को अपनी मिल्कियत में बदलने के खेल में मशगूल है। सरकारी समान की खरीद फ़रोख्त नौकरशाहों का सबसे पसंदीदा आदत बन गया है। नियमों कों ताक पर रख कर आला अफ़सर सप्लायर और निर्माताओं से मिलकर जमकर कमीशनखोरी में जुटें है। सरकारी खजाने की खुली लुट में अफ़सर, नेताओं और ठेकेदारों की तिजोरियां भर रही हैं और मुल्क की जनता का पेट खाली है।

Thursday, April 28, 2011

मुझे क्या बुझाओगें ऐ वक्त की हवाओं
मै वो चिराग हूं जिसे आंधियों ने पाला है।

एक ऐसा आंदोलन जिसने 10 जनपथ से लेकर 7 रेस कोर्स तक को हिला कर रख दिया। एक ऐसी मुहीम जिसमें केवल मुल्क के समाजसेवी ही नहीं बल्कि पुरे देश की जनता ने बढ़ चढ कर हिस्सा लिया। 5 अप्रैल 2011.......... जब पुरा देश वल्र्ड कप की जीत के जश्न की खुमारी उतार रहा था तो उसी समय दिल्ली के जंतर मंतर पर 73 साल का एक शक्स भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहा था। एक ऐसा कानून जो एमपी से लेकर पीएम तक को भ्रष्टाचार की सजा दिला सकता है। जी हां वो 73 साल के शक्स अन्ना हजारे हंै, जिन्होने महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव की दशा बदलने के बाद मुल्क की दशा बदलने की सोची। जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर अन्ना हजारे खडे हुए और उनके पीछे जनसैलाब चलता गया शायद अन्ना को भी आमरण अनशन पर बैठने से पहले इतना पता नहीं था कि, लाखों लोगों का गुस्सा लावे की तरह फुट पडेगा। भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी जनता के लिए अन्ना एक आदर्श बन गए। 98 घण्टे चले इस आंदोलन में हर घण्टे नए नए लोग जुडते चले गए। अब इस मुल्क की जनता समझ चुकी है कि है कि और इंतजार नहीं किया जा सकता, अगर आज कुछ नहीं किया गया तो देर हो जायेगी, और भविष्य खतरे में पड जायेगा। और शायद यही कारण रहा कि इस मुहीम में पुरी देश की जनता ने अपनी अहम भागीदारी निभाइ, और लगभग 160 लोगों ने अन्ना हजारे के साथ उपवास रखा। जिनका कहना था.
..........हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय सेे कोई गंगा निकलनी चाहिए...........
यह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें किसी भी नेता को शामिल नहीं होने दिया गया और देश की जनता और समाजसेवियों के साथ बाॅलीवुड के कलाकार और स्कुल-काॅलेज के स्टुडेंटस् ने भी हिस्सा लिया। और इस तरह दिल्ली का जंतर मंतर छोटा पडता गया और आंदोलन का रुप बडा होता गया जिसका नतीजा था कि मुल्क की सरकार को झुकना पडा। लेूकिन एक सवाल यहां यह उठता है कि देश की सबसे बडी पंचायत में मानसून सेशन तक पास होने वाला यह बिल क्या पाक-साफ होगा या भ्रष्टाचारियों के आगे दब कर रह जायेगा? लेकिन यहां कहना लाजिमी होगा कि.............
अपने पुरखों की विरासत को सम्भालों यारों
वरना अबकी बरसात में ये दीवार भी ढह जायेगी.........