Thursday, April 28, 2011

मुझे क्या बुझाओगें ऐ वक्त की हवाओं
मै वो चिराग हूं जिसे आंधियों ने पाला है।

एक ऐसा आंदोलन जिसने 10 जनपथ से लेकर 7 रेस कोर्स तक को हिला कर रख दिया। एक ऐसी मुहीम जिसमें केवल मुल्क के समाजसेवी ही नहीं बल्कि पुरे देश की जनता ने बढ़ चढ कर हिस्सा लिया। 5 अप्रैल 2011.......... जब पुरा देश वल्र्ड कप की जीत के जश्न की खुमारी उतार रहा था तो उसी समय दिल्ली के जंतर मंतर पर 73 साल का एक शक्स भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहा था। एक ऐसा कानून जो एमपी से लेकर पीएम तक को भ्रष्टाचार की सजा दिला सकता है। जी हां वो 73 साल के शक्स अन्ना हजारे हंै, जिन्होने महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव की दशा बदलने के बाद मुल्क की दशा बदलने की सोची। जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर अन्ना हजारे खडे हुए और उनके पीछे जनसैलाब चलता गया शायद अन्ना को भी आमरण अनशन पर बैठने से पहले इतना पता नहीं था कि, लाखों लोगों का गुस्सा लावे की तरह फुट पडेगा। भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी जनता के लिए अन्ना एक आदर्श बन गए। 98 घण्टे चले इस आंदोलन में हर घण्टे नए नए लोग जुडते चले गए। अब इस मुल्क की जनता समझ चुकी है कि है कि और इंतजार नहीं किया जा सकता, अगर आज कुछ नहीं किया गया तो देर हो जायेगी, और भविष्य खतरे में पड जायेगा। और शायद यही कारण रहा कि इस मुहीम में पुरी देश की जनता ने अपनी अहम भागीदारी निभाइ, और लगभग 160 लोगों ने अन्ना हजारे के साथ उपवास रखा। जिनका कहना था.
..........हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय सेे कोई गंगा निकलनी चाहिए...........
यह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें किसी भी नेता को शामिल नहीं होने दिया गया और देश की जनता और समाजसेवियों के साथ बाॅलीवुड के कलाकार और स्कुल-काॅलेज के स्टुडेंटस् ने भी हिस्सा लिया। और इस तरह दिल्ली का जंतर मंतर छोटा पडता गया और आंदोलन का रुप बडा होता गया जिसका नतीजा था कि मुल्क की सरकार को झुकना पडा। लेूकिन एक सवाल यहां यह उठता है कि देश की सबसे बडी पंचायत में मानसून सेशन तक पास होने वाला यह बिल क्या पाक-साफ होगा या भ्रष्टाचारियों के आगे दब कर रह जायेगा? लेकिन यहां कहना लाजिमी होगा कि.............
अपने पुरखों की विरासत को सम्भालों यारों
वरना अबकी बरसात में ये दीवार भी ढह जायेगी.........

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