Monday, September 10, 2012

ऐसा लगने लगा है की इस मुल्क की सरकार अंग्रेजों के पदचिन्हों पर चलने लगी है, जिस तरह अंग्रेज अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबा देते थे और उस शख्स को जेल में डाल देते थे  जो उनके खिलाफ आवाज बुलंद करता था, कुछ उसी तरह इस मुल्क की सरकार कर रही है, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को देश द्रोही बनाना उसी की बानगी है,  कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के बनाये गए कार्टून में मुझे कुछ भी गलत नहीं लगता, और वो बिलकुल ठीक है, सही में भारत का गैंग रेप किया जा रहा है, भ्रष्टाचार रूपी भेडिये भारत का रेप कर रहे हैं, और सही लिखा है "भ्रस्टमेव जयते" जिस मुल्क की सरकार सर से लेकर पैर तक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो वहां सत्यमेव जयते हो नहीं सकता, इतना ही नहीं उसने अशोक चक्र में भेडिये को भी सही दर्शाया है, उसका सही कहना है की अब  इस मुल्क में शेर नहीं भेडिये ही बसते हैं, जो हर वक़्त इस चक्कर में रहते हैं कब मौका मिले की शिकार करे,  मेरे जेहन में कुछ सवाल अभी भी कौंध रहे हैं, इस मुल्क की सरकार ने एक लाख छियाशी हजार करोड़ रुपये का कोयला घोटाला किया, और जनमानस की भावनाओ के साथ नंगा नाच किया गया है क्या वो राष्ट्र द्रोह नहीं है? महाराष्ट्र में सारे आम उत्तर भारत के के खिलाफ तालिबानी फरमान सुनाया जाता है वो देश द्रोह नहीं है, सारे आम निर्दोष बिहारियों को पीटा जाता है और महारास्ट्र छोड़ने का फरमान जारी किया जाता है क्या वो राष्ट्र द्रोह नहीं है?   कार्टूनिस्ट असीम ने इस मुल्क का यथार्थ कागज पर उकेर दिया तो वो देश द्रोही बन गया, उनका क्या जो सारे आम नफ़रत की बीज बो रहे है और छाती चौड़ी कर के सरेआम घूम रहे हैं, और उनका संरक्षण सरकार भी करती है, वैसे इतिहास गवाह है की जिस देश,काल,समय, वातावरण में जिसने भी यथार्थ लिखने या दिखाने की कोशिश की है उसे समाज हमेशा ही समाज विद्रोही, देशद्रोही का दर्जा दे दिया है, चाहे वो मध्य काल में कबीर हो या आधुनिक काल में प्रेमचंद या निराला, सभी ने अपने समय के यथार्थ को  दिखाने  की कोशिश की तो समाज ने उन्हें या तो हाशिये पर खड़ा कर दिया या फिर समाज विरोधी का तमगा दे कर समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया, मैं कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को कोटि कोटि सः नमन करता हूँ की उसने सत्य और यथार्थ को सामने लाने की कोशिश की, और मैं असीम को देशद्रोही कहने या देशद्रोह का मुकदमा करने का पुरजोर विरोध करता हूँ  और इस मुल्क के युवाओ से आपील करता हूँ की आप असीम पर से देशद्रोह का मुक़दमा वापस लेने के लिए आन्दोलन शुरू करे, मैं अंत मैं यही कहना चाहूँगा की..
 इल्जाम चाहे जो लगा लो हम सच कहने के आदि हैं,
 सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं.....................    

Friday, July 29, 2011

मीडिया और उसकी प्रासंगिकता


मीडिया यानि की लोकतंत्र का चौथा स्तंभ। ताकत इतनी कि क्षण भर में ही क्रांति की ज्वाला भडका दे और चीर नीद्रा में सोई सरकार को हिला कर रख दे। लेकिन लगता है इस तरह के कारनामें अब कहानियों और किस्सों का रुप ले चुके है। अब तो ये कारनामें कभी कभी ही सुनने में आते है, जिनमें मीडिया का कुछ रोल होता है। इसका सबसे बडा कारण है मीडिया का औद्योगीकरण। अब लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ व्यवसाय बन गया है। टीआरपी की होड में सामाजिक सारोकारों से जुडे मुद्दे गायब हो रहे है। आम आदमी और उससे जुडी समस्याएं मीडिया की परिधि में नही आतीं। अब इसकी परिधि में कुछ आया तो वह है ग्लैमर और मसालों से भरी चटपटी खबरंे। इसका ताजा उदाहरण है अभी हाल ही में भारत के तीन दिवसीय दौरे पर आई पाकिस्तान की विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार। चाहे वह इलेक्ट्रिानिक मीडिया हो या प्रिंट सभी जगहों पर भारत और पाकिस्तान के प्रमुख मुद्दे गायब रहें, अगर चर्चा में रहा तो हिना का ग्लैमरस लुक, उनका पहनावा-ओढ़ावा। इलेक्ट्रिानिक मीडिया ने तो हिना के एयरपोर्ट पर उतरते ही उनकी ग्लैमरस अंदाज की बखान शुरु कर दी। अन्य दूसरे दिनों की तरह ही मैं भी सुबह आॅफिस पहुंचा और पेपर पढने लगा तो उस पेपर के एक पृष्ठ के आधे भाग पर केवल हिना रब्बानी का ही समाचार था। मुझे लगा कि इतने बडे कालम में दोनो देशों के मंत्रियों के बीच हुई वार्ता का विश्लेषण होगा लेकिन अफसोस की उन खबरो से मुद्दे गायब थे। उस कालम की खबरों के हिस्सा बने थे तो हिना के वस्त्र ,उनका चश्मा, पर्स और बैग। मुझे उसी अखबार से पता चला कि हिना रब्बानी के बैग की कीमत 12 लाख थी। उस खबर के पढने के बाद पहले तो मुझे हंसी आई लेकिन फिर मैं सोचने लगा कि क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में खबरों का रुप बदल गया है या फिर दर्शक भी वही देखना चाहते है? ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है, इससे पहले भी कई ऐसे वाकये है जो मीडिया पर कई अनुत्तरित सवाल खडे कर दे रहे है। चाहे वह वल्र्ड कप हो या आईपीएल, उस समय पुरी मीडिया में वही छाया रहता है। किसी खिलाडी की क्या दिनचर्या है या किस खिलाडी के किसके साथ अफेयर चल रहे है ये खबरे इनकी प्रमुखता होती हैंै। पेड न्यूज यानि पैसे के एवज में खबरे छापना, यह भी मीडिया को कठघरे में खडा कर रहा है और उसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न खडा कर रहा है। एक तरफ मुल्क में इलेक्ट्रिानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया की संख्या बढती जा रही है तो वही दूसरी तरफ उसकी धार भी कुंद होती जा रही है। और शायद मीडिया की कुंद होती धार का ही परिणाम है कि मुल्क में आम जनता से जुडी तमाम समस्याएं सुरसा की तरह मुंह फैलाये खडी है। दूसरों के घोटालों और उन पर लगें आरोपों की आलोचना करने वाली मीडिया को अपने अन्दर भी झांक कर देखना चाहिए कि क्योकि पिछले कुछ दिनों में मीडिया के दामन भी दागदार हुए है। साहित्य की तरह मीडिया भी समाज का दपर्ण हैं जिसके साथ इसके नुमाइंदो को न्याय करना ही होगा।

Saturday, July 23, 2011

डैगन की दोगली नीति

आज भारत और चीन प्रतिद्वंदी एवं सहयोगी दोनों है। यहीं दोनों के सम्बन्धों की सबसे बडी विचित्रता है और विडंबना भी। जहां भारत इन संबंधों के लेकर हमेशा सकारात्मक भूमिका निभाता रहा है वही चीन हमेशा ही अपनी दोगली नीति की भाषा बोलता रहा है। चीन की कुटनीतिक संस्था चाइना इन्टरनेशनल फाॅर सट्रटजिक स्टडीज के वेबसाईट पर जारी एक लेख में चीनी विशेषज्ञ जान लुई ने अपनी सरकार को भारत को 20 से 25 टुकडों में बांटने की सलाह दी है। इस लेख के कुछ दिनों बाद ही भारतीय सीमा में चीनी सैनिको द्वारा पैकेट गिराना, भारत की सीमा में प्रवेश करना, उसकी दोगली और विस्तारवादी नीति को ही दर्शाता है। 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद से ही और आज तक चीन भारत को लगातार अस्थिर करने और चारो तरफ से घेर कर सामाजिक दृष्टि से कमजोर करने में लगा हुआ है। जिसका सीधा उदाहरण है 1962 का युद्ध। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे के बावजूद चीन ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड दिया। और दुश्मनी के बीज बोने शुरु कर दिये। उसने फिर से एक बार 1965 के भारत और पाकिस्तान युद्ध के समय पाकिस्तान का समर्थन कर दुहराया।की वो भारत के साथ नहीं खडा है। उसके बाद श्री मति इंदिरा गांधी ने दोनो देशों के रिश्तों को सुधारने की पुरजोर कोशिश की लेकिन यह कोशिश भी पुरी तरह से असफल रहीं। सन् 1986 में बीजिग में भारत चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ता चल रही थी कि उसी समय अरुणाचल प्रदेश के समदुरांग घाटी में चानी सैनिक कई किलोमीटर तक अंदर आ गये थे, इतना ही नहीं फरवरी 1967 में जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश को अपना 24 वां राज्य बनाया तब चीन ने इसका विरोध किया। मई 1998 में भारत ने जब पोखरण परिक्षण किया तब भी चीन भारत को परमाणु क्षेत्र में एक महाशक्ति बनता देख जल भुन गया था। और इसके साथ ही यह आरोप भी लगाया कि भारत दक्षिण ऐशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए परमाणु परिक्षण किया है। आज के संदर्भ में चीन की भूमिका को देखा जाए तो यह समझ में आता है कि चीन मुख में राम बगल में छुरी की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। एक हाथ दोस्ती के लिए बढा रहा है, तो वहीं उसका दुसरा हाथ गर्दन की तरफ भी है। हाल में हुए विकिलिक्स के खुलासे भी ये साबित करते हैं कि डैगन का नजरिया भारत के प्रति क्या है। पिछले कुछ दिनों से चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर पेट्रोलिंग बढा दी है। इतना ही नही वह तवांग शहर को भी भारत का हिस्सा मानने से मना कर रहा है। चाहे वे व्यापारिक बिंदु हो या फिर सामुद्रिक, जिसमें वो समुद्री सीमा में भी घेराबंदी कर हिन्द महासागर में भी अपनी स्थिति मजबुत करने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी अच्छी पैठ बना लिया है। ये कुछ ऐसे मुददें है जो यह स्पष्ट करते है कि चीन भारत के साथ संबंध सुधारने के प्रति कतई गंभीर नहीं है। अब इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि चीन भारत के प्रति सहयोगात्मक और साकारात्मक रवैया न अपनाते हुए दोगली और छलने की नीति अपना रहा है। जो कि भारत के लिए आर्थिक, राजनैतिक, सामरिक, व्यापारिक सभी दृष्टियों से घातक है।

Friday, July 15, 2011

मुंबई का दर्द...!


13 जुलाई 2011...........शाम का समय और सड़कांे पर भीड़......,रुकी सड़क पर अपनी मंजिल की और भागते हुए लोग......कही सुरों के तराने की धुन बजनी शुरु हुई थी तो कही थिरकन से घुघरु की आवाज आ रही थी। किसी को घर जाने की जल्दी थी तो किसी को आॅफिस की, हर कोई अपने आप में मगन और मस्त....हर दिनों की तरह ही वुधवार की शाम को भी मुंबई पुरी तरह से अपनी रंग में रंगी दिखाई दे रही थी। लेकिन देखते ही देखते क्षण भर में सारा नजारा बदल गया। और कभी न रुकने वाली मुंबई की चाल थोडी थम सी गई। मुंबई के तीन इलाकों झवेरी, ओपेरा हाउस और दादर में आग और धुए के गुबार उठते दिखाई देने लगे। और बुधवार की शाम को एक बार फिर ऐसा लगा कि भारत की आर्थिक राजधानी को किसी की नजर लग गई है। मै अपने केबिन में बैठा एक स्टोरी की स्क्रिप्ट लिख रहा था कि मेरे आफिस के एक मित्र ने आकर सुचना दी कि सर, अभी अभी मुंबई में सीरियल बम बलास्ट हुए हंै। मै भागा भागा न्यूज रुम की तरफ गया तो देखा कि सभी न्यूज चैनल पर एक ही खबर चल रही थी। चारो तरफ अफरा-तफरी और चीख-पुकार मची हई थी। इस श्रृंखलाबद्ध धमाके में घायल हुए निर्दोषो का एक ही दोष था कि वे आफिस से अपने घर जा रहे थे। एक तरफ पुलिस के आला अधिकारी घटना का स्पष्टीकरण देने में लगे हुए थे तो वही दुसरी तरफ राजनेता और समाज के बुद्धिजीवी इसकी पुरी आलोचना करने में लगे हुए थे लेकिन ये सब देखने के बाद मेरे मन में एक सवाल बार बार उठ रहा था कि क्या आलोचना करने मात्र से ही इतनी बडी समस्या का समाधान निकल पायेगा। जब चाहे तब आतंकवादी मुल्क के बडे शहरों को निशाना बनाने की अपनी नापाक मंशा में कामयाब हो जाते हैं और हमारी सरकार और सुरक्षा ऐजेसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहतीं हंै। खुफिया और जांच ऐजेसियां किसी हमले के बाद उसका बिश्लेषण करने में माहिर हैं कि आतंकवादियों ने हमले को किस तरह अंजाम दिया। वह कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध कराने में अकसर नाकाम रहीं है। इतना ही नहीं मुल्क की सरकार कसाब और अफजल गुरु जैसे खुंखार आतंकवादियों की मेहमानवाजी में लगी हुई है और इनमें भी वोट बैंक देख रही है। मुल्क को एक साॅफ्ट स्टेट का दर्जा हासिल हो गया है जहां जो चाहे जब चाहे आतंकी हमला कर देता है और सरकार के नुमाइंदे घडियाली आंसू बहाने पहुंच जाते है। सबसे आश्चर्य तब होता है जब देश के गृहमंत्री और मुल्क के राजनेता ये बयान देते हैं कि इस तरह के हमलों को रोक पाना संभव नहीं है। तो सवाल यह भी उठता है कि देश की सुरक्षा ऐजेसियां किस लिए बनाई गई है, उनका क्या रोल है? जब देश सुरक्षित ही नहीं है। यह एक ज्वलंत प्रश्न है?

Saturday, June 25, 2011

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता यानी जहां नारियों की पुजा होती है वहां देवताओं का वास होता है।यह श्लोक भले ही भारत की उन्नत संस्कृति और सभ्यता की विरासत का परिचय कराता लेकिन जैसे जैसे भारत माडर्न बनने की फेहरिस्त में आगे बढता जा रहा है इन बातो की अहमियत भी घटती जा रही है और एक भयावह तस्वीर हमारे सामने उपस्थित हो रही है कि अब यह मुल्क महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। यहां बेटियों के लिए किसी भी तरह की इज्जत नहीं है। जहां मां के पेट में ही इनका दम घोट दिया जाता है और सडको पर कर दिया जाता है खुलेआम कत्ल। जी हां यह हाल है उस भारत का जो पुरी दुनिया में एक महाशक्ति बन कर उभर रहा है। यह वही भारत है जिसकी संस्कृति और सभ्यता पुरे संसार में मिसाल कायम करती है। लेकिन जब आप सह सच जानिएगा तो आपकी आखें शर्म से झुक जायेगी। यह है आपका हिंदुस्तान जिसके दिल में बेटियोें के लिए कोई इज्जत नहीं है। जिस देश में बेटियों का सौदा खुलेआम कर दिया जाता है। सरेआम सडको पर उनकी अस्मत को तार तार किया जाता है। आए दिन होती है उनके साथ बलात्कार की वारदातें। लडकियों के लिए असुरक्षित देशों में भारत चैथे स्थान पर है। विकास में बडों बडों को पीछे छोडने वाला देश, दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाला देश कहां है इस पर जरा गौर करिए की किन किन देशों के साथ खडा है आपका अपना मुल्क। लडकियों पर जुर्म की इबारत लिखने वाला भारत अफगानिस्तान, काॅगो, और पाकिस्तान के साथ टक्कर ले रहा है। नेहरु, गांधी, सरदार पटेल और भगत सिंह के देश में बेटियां नहीं है सुरक्षित। चाहे वह गांव हो या शहर हर जगह वासना से भरे हुए मर्दो की निगाहे उन्हें घुरती रहती है। इतना ही नहीं घरों के भीतर भी लडकियां महफुज नहीं हैं वहां रिश्तेदारों की आंखें उन्हे घुरती रहती है। ये आंकडें तो और भी चैकाने वाले है, कि पिछले सौ सालों में मुल्क से 5 करोड बेटियां लापता हां गई। ये सच है उस देश का जहां शक्ति यानि देवी की पुजा की जाती है। जिस देश में राष्ट्रपति लोकसभा की अध्यक्ष, संसद में विपक्ष की नेता महिला हो और कुछ राज्यों की कमान भी महिलाओं के ही हाथ में हो और उस देश का यह हाल कि वह मुल्क लडकियों और महिलाओं के लिए महफुज नहीं है, यह बडे ही शर्म की बात है। महिलाओं के लिए कानूनी सुचना और कानूनी सहायता केंद्र थामसन राॅयटर्स टेक्सला वूमेन की सर्वे के मुताबिक महिलाओं पर जुर्म ढाने और उनके लिए महफुज रहने वाले देशों की फेहरिस्त में भारत का स्थान चैथा है। इस संस्था ने अपने सर्वे में यह भी खुलासा किया है कि भारत में बेटियों को या तो मां के पेट में ही मार दिया जाता है या पैदा होने के बाद उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाता है। इतना ही नहीं भारत लडकियों की तस्करी का सबसे बडा बाजार बन गया है जहां भारी संख्या में इनको देह व्यापार के काले धधें में डाल दिया जाता है। लडकियों के साथ यौन शोषण एक छोटे से गांव से लेकर मुल्क के बडे बडे महानगरों तक में किया जा रहा है जिसमें उनके साथ छेडछाड़, बलात्कार, और उनकी हत्या तक भी शामिल है। भारत में लडकियां धर्म, जाति के नाम पर भी शोषण का शिकार बनती हैं। जिस देश में नारी को देवी और शक्ति माना जाता है, उस मुल्क की आधी आबादी के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है इसके सौकडो सबूत हैं। सिर्फ 2009 में ही महिलाओं पर 2 लाख 3 हजार 8 सौ 4 अपराधिक वारदातें हुई जिनमें हत्या, बलात्कार, यौन शाोषण, और उनकी तस्करी जैसे मामले शामिल हैं, लेकिन इनमें अभी भी सच्चाई बहुत कम है। महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्थाओं और जानकारों की बातो पर अगर गौर किया जाये तो इनके खिलाफ होने वाले आधे अपराध तो पुलिस थाने तक पहुंचते ही नहीं। लडकियों पर हो रहे जुर्म की ये दास्तां यही खतम नहीं होती बल्कि इसमें आगे आता है बेटियों को संसार में आने से पहले ही उन्हें मौत की नींद सुला देना यानि कन्या भ्रूण हत्या। भारत में कोख के कातिलो की संख्या भी लगातार बढती जा रही है। ये हत्यारे अपनी ही खुन की हत्या करने में पीछे नहीं रहते। भारत में कोख के हत्यारों की फेहरिस्त में अब आगें हैं शहरों के लोग। ये वे लोग है जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है, ये ऐसे रईस है जो अपना वंश आगे बढाना चाहते हैं, और जिन्हें होती है बेटों की लालसा। भले ही ऐसे लोग समाज को दिखाने के लिए पढे लिखे होते हैं लेकिन इनके यहां ही की जाती है कन्याओं की भु्रण हत्या। भले ही आप इन बातों से चैक जायेगे लेकिन ये सच है। एक समय ऐसा था जब बालिका भ्रुण हत्या को अनपढ लोगों और गांवों से जोड कर देखा जाता था लेकिन समय में बदलाव के बाद ये अपराध गावों से निकलकर शहरों की चकाचैघ भरी जिंदगी में पहुंच गई है। जानी मानी पत्रिका लैण्ड सेट के मुताबिक पढे लिखे रईस परिवारों में पहला बच्चा लडकी होने पर दूसरे बच्चे के रुप में लडकी स्वीकार नहीं है। आज मुल्क तरक्की की राह पर जरुर है लेकिन विकास के पीछ के सच इतना भयावह और डरावना होगा यह किसी ने भी नहीं सोचा होगा।

Monday, June 20, 2011

क्या उत्तरप्रदेश में भी बदलाव की जरुरत है?

उत्तरप्रदेश से मेरा लगाव कुछ अलग है। भले ही मै बिहार में पला बढा लेकिन जीवन जीने की कला सिखाइ इसी राज्य ने और शायद यही कारण है कि जब भी यहां कुछ अच्छा नहीं होता तो मन उद्वेलित हो जाता है। पिछले कुछ दिनों से राज्य के किसानों पर हुआ अन्याय हो या अपराधिक वारदातें इन सभी ने एक बार फिर कुछ सवालों को ज्वलंत कर दिया है कि क्या बिहार, बंगाल, केरल, तामिलनाडु और अन्य राज्यों की तरह उत्तरप्रदेश में भी सियासी बदलाव की जरुरत है? क्या यूपी में विकास की बयार थम गई है? क्या यूपी में एक अच्छे स्थायी और टिकाउ नेतृत्व की कमी महसूस की जा रही है? क्योंकि यह वही उत्तरप्रदेश है जहां से ही दिल्ली की सत्ता का रास्ता निकलता है, जिसकी राजधानी पुरे देश के सामने तहजीब की मिसाल भी पेश करती है। आज वही उत्तरप्रदेश अपराधप्रदेश में तब्दील हो गया है। आखिर क्यो? सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय और एक अच्छें शासन का वादा करने वाली माया सरकार की प्रदेश के प्रति माया कहां चली गई है? क्यों राज्य की जनता बदहाली में जीने कि लिए मजबुर है? और अपने को पुरी तरह महफुज नहीं पा रहीं है। जिस तरह से पिछले तीन या चार महीने में यूपी में अपराध का ग्राफ बढा है उसमें माया सरकार की नाकामी साफ दिखाई दे रही है। दलितो की मसीहा कहलाने वाली और उनपर अपनी कृपा दिखाने वाली मायावती के तेवर अब ठंडे पडते दिख रहे है। आज यूपी की हालात देख कर 12 साल पुराने बिहार की याद ताजा हो जा रही है जब वहां भी अपराध का बाजार खुलेआम चलता था। उस समय बिहार की हालत भी आज की यूपी की तरह ही थे। जहां हर ओर अपराध और अपराधियों का ही बोलबाला था और चारो ओर फैला था जंगल राज्य। और आज कुछ ऐसी ही हालत यूपी के है जहां अपराधियों के हौसले पुरी तरह बुलंद हंै। जहां एक तरफ माया का सरकारी तंत्र अपराध को काबु करने और जन समस्याओं को हल करने में पुरी तरह विफल होता दिख रहा है वही दुसरी तरफ इन सारे मुद्दो पर अन्य राजनीतिक पार्टियां भी अपनी अपनी राजनीति की रोटीयां सेकने में पीछे नहीं है। चाहे वह चाटुकारों की पार्टी कांग्रेस हो या फिर मुल्क की राजनीति में अपना अस्तित्व तलाश रही बीजेपी। मै कुछ राजनीति के इतिहास में झांकना चाहुंगा कि कांगेस तो ऐसा लग रहा है कि स्व. इंदिरा गांधी के ही कदमों पर चल पडी है। गरीबी हटाओ का नारा देने वाली इंदिरा गांधी का मकसद गरीबी हटाना नहीं बल्कि गरीबी हटाओ का नारा दे कर जनता में मेहरबानी का अहसास पैदा करना था और कुछ ऐसी ही स्थिति इस समय कांगेस और कांग्रेस के युवराज की है। फिलहाल देखना यह होगा कि अगले साल यूपी की परिक्षा में कांग्रेस को आम आदमी का साथ मिलता है कि नहीं। राजनीति के गर्म तवे पर सियासी रोटियां सेकने में बीजेपी भी पीछे नहीं है जिसका सीधा उदाहरण है उमा की वापसी। आपसी कलह, खोते जनाधार और अपनी मुख्य धारा की राह से भटकने वाली बीजेपी को यूपी की राजनीति में डगमगाती अपनी नाव को खेने के लिए उमा का सहारा लेना पडा हैं लेकिन यहां एक सवाल मेरे मन में कौंध रहा है कि क्या 6 साल के वनवास के बाद उमा यूपी में खोया हुआ जनाधार वापस ला पायेगी? और कुछ ऐसी ही हालत समाजवादी पार्टी के है। उत्तरप्रदेश में जातिवाद की राजनीति कर अपनी सियासी कद को बढाने वाले धरतीपुत्र सत्ता में आने के बाद धरती और उससे जुडे लोगों से किए वादों को भूल गए और और इनके शासन काल में वो सारे काम किए जो इन्हें सत्ता से बेदखल करने में अपनी अहम भागिदारी निभाई। और रही सही कसर पार्टी की अंदरुनी मतभेद ने पुरी कर दी। बिहार या अन्य राज्यों को संयोग से उनके मुखिया तो मिल गए लेकिन यूपी को कैान मिलेगा जो उसकी पुरानी खोयी विरासत को वापस ले आये और विकास के रथ को आगे बढाए? यह एक यक्ष प्रश्न है।

Sunday, June 5, 2011

रामलीला मैदान पर महाभारत क्यों....................

रामलीला मैदान पर महाभारत क्यों.....................
रामदेव जी ये आपको पहले ही समझ लेना चाहिए था कि जिस व्यवस्था परिवर्तन के खिलाफ आपने एक जन आंदोलन छेडा है उसका अंजाम कुछ ऐसा ही होना था ये आज नई बात नहीं है बल्कि देष का इतिहास बताता है कि जब जब भी मुल्क में इस तरह के आंदोलन हुए है उनका दमन उतना ही बर्बर तरीके से किया गया गया है, जिसका सीधा उदाहरण जेपी आंदोलन है। 4 जुन से षुरु हुए बाबा रामदेव के सत्याग्रह का भी जिस तरह से पुलिस ने दमन किया है, वह बहुत ही निन्दनीय है। और कही न कही यह राजनीति से प्रभावित कदम लगता है, जिस तरह से रात के 1 बजे रामलीला मैदान में सो रहे बच्चों, महिलाओं और निहत्थे लोगों पर पुलिस ने लाठीयां बरसाई और आंसू गैस के गोले छोडे वह सरकार की तानाषाही और पुलिस की तालिबानी रवैये को ही दिखाती है। क्या भ्रश्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना गलत है? क्या इस देष में अपने हक हकुक की आवाज उठाने पर अब यही रवैया अपनाया जायेगा? इस पुरे मामले में सरकार और दिल्ली पुलिस की हताषा साफ दिखाई दे रही थी। सदैव अपके साथ सदैव आपके लिए तत्पर रहने वाली दिल्ली पुलिस का यह काला चेहरा है जिसने रात में सोते हुए लोगों पर लाठियां बरसाई। अगर कोई मुल्क की व्यवस्था परिवर्तन के लिए आवाज बुलंद करता है तो इसमें हर्ज क्या है। समाज में काई भी सकारात्मक परिवर्तन उस समाज के लोगों संकल्प षक्ति और कर्मठता कि बिना संभव नहीं है। अगर मुल्क में सकारात्मक परिवर्तन के लिए संकल्प षक्ति और कर्मठता अगर बाबा रामदेव दिखा रहे है तो मुझे नहीं लगता कि कोई गलत कार्य कर रहें है। हाई प्रोफाइल संस्कृति के अंतर्गत काम करते हुए व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य को कभी पुरा नहीं किया जा सकता है लेकिन साथ ही साथ यह भी सच है कि असंगठित होकर अपने लक्ष्य को हासिल भी नहीं किया जा सकता, जिस काम को आज बाबा रामदेव ने बखुबी निभया है। कुछ सवाल मेरे जेहन में अभी भी अनुत्तरित है कि पुलिस जिसे बाबा के अनषन के बारे में पहले से ही पता था वह रात में एकाएक क्यों जागी? आखिर क्यों पुलिस ने रात में ही हमला बोला? बिना गिरफतारी वारंट के बाबा और उन हजारों लोंगों पर क्यों कहर बरपाया गया?