Friday, July 15, 2011

मुंबई का दर्द...!


13 जुलाई 2011...........शाम का समय और सड़कांे पर भीड़......,रुकी सड़क पर अपनी मंजिल की और भागते हुए लोग......कही सुरों के तराने की धुन बजनी शुरु हुई थी तो कही थिरकन से घुघरु की आवाज आ रही थी। किसी को घर जाने की जल्दी थी तो किसी को आॅफिस की, हर कोई अपने आप में मगन और मस्त....हर दिनों की तरह ही वुधवार की शाम को भी मुंबई पुरी तरह से अपनी रंग में रंगी दिखाई दे रही थी। लेकिन देखते ही देखते क्षण भर में सारा नजारा बदल गया। और कभी न रुकने वाली मुंबई की चाल थोडी थम सी गई। मुंबई के तीन इलाकों झवेरी, ओपेरा हाउस और दादर में आग और धुए के गुबार उठते दिखाई देने लगे। और बुधवार की शाम को एक बार फिर ऐसा लगा कि भारत की आर्थिक राजधानी को किसी की नजर लग गई है। मै अपने केबिन में बैठा एक स्टोरी की स्क्रिप्ट लिख रहा था कि मेरे आफिस के एक मित्र ने आकर सुचना दी कि सर, अभी अभी मुंबई में सीरियल बम बलास्ट हुए हंै। मै भागा भागा न्यूज रुम की तरफ गया तो देखा कि सभी न्यूज चैनल पर एक ही खबर चल रही थी। चारो तरफ अफरा-तफरी और चीख-पुकार मची हई थी। इस श्रृंखलाबद्ध धमाके में घायल हुए निर्दोषो का एक ही दोष था कि वे आफिस से अपने घर जा रहे थे। एक तरफ पुलिस के आला अधिकारी घटना का स्पष्टीकरण देने में लगे हुए थे तो वही दुसरी तरफ राजनेता और समाज के बुद्धिजीवी इसकी पुरी आलोचना करने में लगे हुए थे लेकिन ये सब देखने के बाद मेरे मन में एक सवाल बार बार उठ रहा था कि क्या आलोचना करने मात्र से ही इतनी बडी समस्या का समाधान निकल पायेगा। जब चाहे तब आतंकवादी मुल्क के बडे शहरों को निशाना बनाने की अपनी नापाक मंशा में कामयाब हो जाते हैं और हमारी सरकार और सुरक्षा ऐजेसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहतीं हंै। खुफिया और जांच ऐजेसियां किसी हमले के बाद उसका बिश्लेषण करने में माहिर हैं कि आतंकवादियों ने हमले को किस तरह अंजाम दिया। वह कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध कराने में अकसर नाकाम रहीं है। इतना ही नहीं मुल्क की सरकार कसाब और अफजल गुरु जैसे खुंखार आतंकवादियों की मेहमानवाजी में लगी हुई है और इनमें भी वोट बैंक देख रही है। मुल्क को एक साॅफ्ट स्टेट का दर्जा हासिल हो गया है जहां जो चाहे जब चाहे आतंकी हमला कर देता है और सरकार के नुमाइंदे घडियाली आंसू बहाने पहुंच जाते है। सबसे आश्चर्य तब होता है जब देश के गृहमंत्री और मुल्क के राजनेता ये बयान देते हैं कि इस तरह के हमलों को रोक पाना संभव नहीं है। तो सवाल यह भी उठता है कि देश की सुरक्षा ऐजेसियां किस लिए बनाई गई है, उनका क्या रोल है? जब देश सुरक्षित ही नहीं है। यह एक ज्वलंत प्रश्न है?

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