Saturday, July 23, 2011

डैगन की दोगली नीति

आज भारत और चीन प्रतिद्वंदी एवं सहयोगी दोनों है। यहीं दोनों के सम्बन्धों की सबसे बडी विचित्रता है और विडंबना भी। जहां भारत इन संबंधों के लेकर हमेशा सकारात्मक भूमिका निभाता रहा है वही चीन हमेशा ही अपनी दोगली नीति की भाषा बोलता रहा है। चीन की कुटनीतिक संस्था चाइना इन्टरनेशनल फाॅर सट्रटजिक स्टडीज के वेबसाईट पर जारी एक लेख में चीनी विशेषज्ञ जान लुई ने अपनी सरकार को भारत को 20 से 25 टुकडों में बांटने की सलाह दी है। इस लेख के कुछ दिनों बाद ही भारतीय सीमा में चीनी सैनिको द्वारा पैकेट गिराना, भारत की सीमा में प्रवेश करना, उसकी दोगली और विस्तारवादी नीति को ही दर्शाता है। 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद से ही और आज तक चीन भारत को लगातार अस्थिर करने और चारो तरफ से घेर कर सामाजिक दृष्टि से कमजोर करने में लगा हुआ है। जिसका सीधा उदाहरण है 1962 का युद्ध। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे के बावजूद चीन ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड दिया। और दुश्मनी के बीज बोने शुरु कर दिये। उसने फिर से एक बार 1965 के भारत और पाकिस्तान युद्ध के समय पाकिस्तान का समर्थन कर दुहराया।की वो भारत के साथ नहीं खडा है। उसके बाद श्री मति इंदिरा गांधी ने दोनो देशों के रिश्तों को सुधारने की पुरजोर कोशिश की लेकिन यह कोशिश भी पुरी तरह से असफल रहीं। सन् 1986 में बीजिग में भारत चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ता चल रही थी कि उसी समय अरुणाचल प्रदेश के समदुरांग घाटी में चानी सैनिक कई किलोमीटर तक अंदर आ गये थे, इतना ही नहीं फरवरी 1967 में जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश को अपना 24 वां राज्य बनाया तब चीन ने इसका विरोध किया। मई 1998 में भारत ने जब पोखरण परिक्षण किया तब भी चीन भारत को परमाणु क्षेत्र में एक महाशक्ति बनता देख जल भुन गया था। और इसके साथ ही यह आरोप भी लगाया कि भारत दक्षिण ऐशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए परमाणु परिक्षण किया है। आज के संदर्भ में चीन की भूमिका को देखा जाए तो यह समझ में आता है कि चीन मुख में राम बगल में छुरी की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। एक हाथ दोस्ती के लिए बढा रहा है, तो वहीं उसका दुसरा हाथ गर्दन की तरफ भी है। हाल में हुए विकिलिक्स के खुलासे भी ये साबित करते हैं कि डैगन का नजरिया भारत के प्रति क्या है। पिछले कुछ दिनों से चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर पेट्रोलिंग बढा दी है। इतना ही नही वह तवांग शहर को भी भारत का हिस्सा मानने से मना कर रहा है। चाहे वे व्यापारिक बिंदु हो या फिर सामुद्रिक, जिसमें वो समुद्री सीमा में भी घेराबंदी कर हिन्द महासागर में भी अपनी स्थिति मजबुत करने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी अच्छी पैठ बना लिया है। ये कुछ ऐसे मुददें है जो यह स्पष्ट करते है कि चीन भारत के साथ संबंध सुधारने के प्रति कतई गंभीर नहीं है। अब इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि चीन भारत के प्रति सहयोगात्मक और साकारात्मक रवैया न अपनाते हुए दोगली और छलने की नीति अपना रहा है। जो कि भारत के लिए आर्थिक, राजनैतिक, सामरिक, व्यापारिक सभी दृष्टियों से घातक है।

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