Wednesday, August 11, 2010

भारतेंदु से लेकर प्रेमचंद तक सभी ने
भारत-दुर्दशा के लिए भारत-भाग्य को दोषी माना है, प्रेमचंद भी मोती और
हीरा के माध्यम से इसी भाग्यवादी दृष्टिकोण को प्रकट कर रहे है। जब देश की
सामान्य जनता परतंत्रता के जुए के नीचे त्राहि-त्राहि कर रही थी, उस समय
भी कुछ लोग धन और ऐश्वर्य का भोग कर मस्ती से पागुर कर रहे थे, 'हरे हार
...में चलते' इन लोगों की ओर कहानी में बैलों के माध्यम से ही ध्यान खींचा
गया है..

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