Saturday, August 21, 2010

आखिर भारत के किसान इतने उग्र क्यों ?


सदियों से कृषि प्रधान देश के तौर पर जाने-जाते रहे देश की सबसे बड़ी विडंबना यही रही है कि जब वोटों की बात आती है तो पूरी की पूरी राजनीति किसानों और गरीबों के नाम पर की जाती है, लेकिन जब नीतिया बनाकर उसे लागू करने का वक्त आता है तो जनता के जरिए चुनी गई अपनी लोकतात्रिक सरकारें भी किसानों के हितों की अनदेखी करने लगती हैं।

प्रेमचंद के गोदान का किसान अपने साथ होने वाले अन्याय का प्रतिकार करने की बजाय इसे अपनी नियति स्वीकार करते हुए पूरी जिंदगी गुजार देता था, लेकिन आज का किसान बदल गया है। अब वह अपनी जमीन के लिए सरकारों तक से लोहा लेता है। कई बार अपना खून बहाने से भी नहीं चूकता। इसका ताजा उदाहरण अलीगढ़ में यमुना एक्सप्रेस-वे के खिलाफ हो रहा हिंसक आदोलन है, जिसमें चार किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

उत्तर प्रदेश में यह पहला मौका नहीं है, जब किसानों ने अपना खून बहाया है। मुआवजे की माग को लेकर इसी साल ग्रेटर नोएडा में भी हिंसक प्रदर्शन हो चुका है। पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम में हिंसक विरोध के बाद यह पहला बड़ा किसान आदोलन है, जिसमें अपनी जमीन के लिए किसानों को अपना खून बहाना पड़ा है।

आखिर किसान इतना उग्र क्यों होता जा रहा है कि उसे खून बहाने से भी हिचक नहीं हो रही है? गंभीरता से ध्यान दिया जाए तो इसके पीछे दो वजहें नजर आती हैं। एक का रिश्ता खेती की पारंपरिक संस्कृति और पारिवारिक भरण-पोषण से है, वहीं दूसरी आज की व्यापार व व्यवसाय प्रधान उदार वैश्विक अर्थव्यवस्था है।

उदारीकृत अर्थव्यवस्था के चलते हमारे शासकों और नीति नियंताओं को विकास की राह सिर्फ व्यावसायिकता के ही जरिये नजर आ रही है। बड़े-बड़े स्पेशल इकोनामिक जोन [सेज] और माल बनाने के लिए जमीनों का अधिग्रहण सरकारों को सबसे आसान काम नजर आ रहा है। जमीनों का अधिग्रहण अति महानगरीय या नगरीय हो चुके दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों के आसपास के गावों के किसानों को भले ही चेहरे पर मुस्कान लाने का सबब बनता है, लेकिन हमारे देश का आम किसान आज भी पारंपरिक तौर पर अपनी जमीन से ही प्यार करने वाली मानसिकता का है। उसे लगता है कि अधिग्रहण के बाद जब जमीन उसके हाथ से निकल जाएगी तो उसके सामने भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।

वैसे भी नोएडा से अलीगढ़-हाथरस होते हुए आगरा तक के किसानों के पास औसतन एक हेक्टेयर जमीन ही है। इस जमीन के अधिग्रहण के बाद उन्हें भले की एकमुश्त रकम मिल जाए, लेकिन उन्हें पता है कि इतनी कम जमीन होने के बावजूद वे कम से कम भूखे नहीं मर सकते। कुछ यही सोच नंदीग्राम और सिंगूर के किसानों की भी रही है।

6 comments:

  1. इस नए और सुंदर से हिंदी चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  2. ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।

    किसी भी तरह की तकनीकिक जानकारी के लिये अंतरजाल ब्‍लाग के स्‍वामी अंकुर जी,
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    धन्‍यवाद

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  3. "हमारे देश का आम किसान आज भी पारंपरिक तौर पर अपनी जमीन से ही प्यार करने वाली मानसिकता का है। उसे लगता है कि अधिग्रहण के बाद जब जमीन उसके हाथ से निकल जाएगी तो उसके सामने भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।"
    सटीक और समसामयिक

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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