ऐसा लगने लगा है की इस मुल्क की सरकार अंग्रेजों के पदचिन्हों पर चलने लगी है, जिस तरह अंग्रेज अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबा देते थे और उस शख्स को जेल में डाल देते थे जो उनके खिलाफ आवाज बुलंद करता था, कुछ उसी तरह इस मुल्क की सरकार कर रही है, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को देश द्रोही बनाना उसी की बानगी है, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के बनाये गए कार्टून में मुझे कुछ भी गलत नहीं लगता, और वो बिलकुल ठीक है, सही में भारत का गैंग रेप किया जा रहा है, भ्रष्टाचार रूपी भेडिये भारत का रेप कर रहे हैं, और सही लिखा है "भ्रस्टमेव जयते" जिस मुल्क की सरकार सर से लेकर पैर तक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो वहां सत्यमेव जयते हो नहीं सकता, इतना ही नहीं उसने अशोक चक्र में भेडिये को भी सही दर्शाया है, उसका सही कहना है की अब इस मुल्क में शेर नहीं भेडिये ही बसते हैं, जो हर वक़्त इस चक्कर में रहते हैं कब मौका मिले की शिकार करे, मेरे जेहन में कुछ सवाल अभी भी कौंध रहे हैं, इस मुल्क की सरकार ने एक लाख छियाशी हजार करोड़ रुपये का कोयला घोटाला किया, और जनमानस की भावनाओ के साथ नंगा नाच किया गया है क्या वो राष्ट्र द्रोह नहीं है? महाराष्ट्र में सारे आम उत्तर भारत के के खिलाफ तालिबानी फरमान सुनाया जाता है वो देश द्रोह नहीं है, सारे आम निर्दोष बिहारियों को पीटा जाता है और महारास्ट्र छोड़ने का फरमान जारी किया जाता है क्या वो राष्ट्र द्रोह नहीं है? कार्टूनिस्ट असीम ने इस मुल्क का यथार्थ कागज पर उकेर दिया तो वो देश द्रोही बन गया, उनका क्या जो सारे आम नफ़रत की बीज बो रहे है और छाती चौड़ी कर के सरेआम घूम रहे हैं, और उनका संरक्षण सरकार भी करती है, वैसे इतिहास गवाह है की जिस देश,काल,समय, वातावरण में जिसने भी यथार्थ लिखने या दिखाने की कोशिश की है उसे समाज हमेशा ही समाज विद्रोही, देशद्रोही का दर्जा दे दिया है, चाहे वो मध्य काल में कबीर हो या आधुनिक काल में प्रेमचंद या निराला, सभी ने अपने समय के यथार्थ को
दिखाने की कोशिश की तो समाज ने उन्हें या तो हाशिये पर खड़ा कर दिया या फिर समाज विरोधी का तमगा दे कर समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया, मैं कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को कोटि कोटि सः नमन करता हूँ की उसने सत्य और यथार्थ को सामने लाने की कोशिश की, और मैं असीम को देशद्रोही कहने या देशद्रोह का मुकदमा करने का पुरजोर विरोध करता हूँ और इस मुल्क के युवाओ से आपील करता हूँ की आप असीम पर से देशद्रोह का
मुक़दमा वापस लेने के लिए आन्दोलन शुरू करे, मैं अंत मैं यही कहना चाहूँगा की..
इल्जाम चाहे जो लगा लो हम सच कहने के आदि हैं,
सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं.....................
इल्जाम चाहे जो लगा लो हम सच कहने के आदि हैं,
सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं.....................